मंदिर (देवालय) बनाने के फ़ायदे

mandir banane ke fayde

अग्नि पुराण के 38वें अध्याय के अनुसार जो मनुष्य देवता के लिए मंदिर-जलाशय आदि के निर्माण कराने की इच्छा करता है, उसका वह शुभ संकल्प ही उसके हजारों जन्मों के पापों का नाश कर देता है। जो मन से भावनाद्वारा भी मंदिर का निर्माण करते हैं, उनके सैकड़ों जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। जो लोग भगवान् श्रीकृष्ण के लिए किसी दूसरे के द्वारा बनवाये जाते हुए मंदिर के निर्माण कार्य का अनुमोदन मात्र कर देते हैं, वे भी समस्त पापों से मुक्त हो उन अच्युतदेव के लोक (वैकुण्ठ अथवा गोलोकधाम) प्राप्त होते हैं। भगवान् विष्णु के निमित्त मंदिर का निर्माण करके मनुष्य अपने भूतपूर्व तथा भविष्य में होनेवाले दस हजार कुलों को तत्काल विष्णुलोक में जाने का अधिकारी बना देता है।

श्रीकृष्ण-मंदिर का निर्माण करनेवाले मनुष्य के पितर नरक के क्लेशों से तत्काल छुटकारा पा जाते हैं और दिव्य वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो बड़े हर्ष के साथ विष्णुधाम में निवास करते हैं। देवालय का निर्माण ब्रह्म हत्या आदि पापों के पुंज का नाश करने वाला है। यज्ञों से जिस फल की प्राप्ति नहीं होती है, वह भी देवालय का निर्माण कराने मात्र से प्राप्त हो जाता है। देवालय का निर्माण करा देने पर समस्त तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त हो जाता है।

देवालय निर्माण फल

एकयातन (एक ही देवविग्रह के लिहे एक कमरे का) मंदिर बनवाने वाले पुरुष को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। त्र्यातन-मंदिर (तीन देवविग्रह) का निर्माण करनेवाले को शिवलोक की प्राप्ति होती है और अष्टायतन-मंदिर (आठ देवविग्रह) के निर्माण से श्रीहरि की संनिधि में रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है। जो षोडशायतन-मंदिर (16 देवविग्रह) का निर्माण कराता है, वह भोग और मोक्ष, दोनों पाता है।

श्रीहरि के मंदिर की तीन श्रेणियाँ हैं–कनिष्ठ, मध्यम और श्रेष्ठ। इनका निर्माण कराने से क्रमशः स्वर्गलोक, विष्णुलोक तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। धनी मनुष्य भगवान् विष्णु का उत्तम श्रेणी का मन्दिर बनवाकर जिस फल को प्राप्त करता है, उसे ही निर्धन मनुष्य निम्नश्रेणी का मंदिर बनवाकर भी प्राप्त कर लेता है। धन-उपार्जन कर उसमें से थोड़ा-सा ही खर्च करके यदि मनुष्य देव-मंदिर बनवा ले तो बहुत अधिक पुण्य एवं भगवान् का वरदान प्राप्त करता है। सामर्थ्यानुसार ही खर्च करके भगवान् विष्णु का मंदिर बनवाने वाला मनुष्य उस नित्य धाम को प्राप्त होता है, जहाँ साक्षात् गरुड़ की ध्वजा फहराने वाले भगवान् विष्णु विराजमान होते हैं।

जो लोग बचपन में खेलते समय धूलि से भगवान् विष्णु का मंदिर बनाते हैं, वे भी उनके धाम को प्राप्त होते हैं। तीर्थ में, पवित्र स्थान में, सिद्धक्षेत्र में तथा किसी आश्रम पर जो भगवान् विष्णु का मंदिर बनवाते हैं, उन्हें अन्यत्र मंदिर बनाने का जो फल बताया गया है, उससे तीन गुना अधिक फल मिलता है। जो लोग भगवान् विष्णु के मंदिर को चूने से लिपाते और उसपर बन्धूक के फूल का चित्र बनाते हैं, वे अंत में भगवान् के धाम में पहुँच जाते हैं। भगवान् का जो मंदिर गिर गया हो, गिर रहा हो, या आधा गिर चुका हो, उसका जो मनुष्य जीर्णोद्धार करता है, वह नवीन मंदिर बनवाने की अपेक्षा दूना पुण्यफल प्राप्त करता है। जो गिर हुए विष्णु-मंदिर को पुनः बनवाता और गिरे हुए की रक्षा करता है, वह मनुष्य साक्षात् भगवान् विष्णु का स्वरूप प्राप्त करता है। भगवान् के मंदिर की ईंटें जब तक रहती हैं, तब तक उसका बनवाने वाला विष्णुलोक में कुलसहित प्रतिष्ठित होता है। इस संसार में और परलोक में वही पुण्यवान और पूजनीय है।

जो भगवान् श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाता है, वही पुण्यवान उत्पन्न हुआ है, उसी ने अपने कुल की रक्षा की है। जो भी भगवान् विष्णु, शिव, सूर्य और देवी आदि का मंदिर बनवाता हैं, वही इस लोक में कीर्ति का भागी होता है। सदा धन की रक्षा में लगे रहने वाले मूर्ख मनुष्य को बड़े कष्ट से कमाए हुए अधिक धन से क्या लाभ हुआ, यदि वह उससे श्रीकृष्ण का मंदिर ही नहीं बनवाता। जिसका धन पितरों, ब्राह्मणों और देवताओं के उपयोग में नहीं आता तथा बधू-बांधवों के भी उपयोग में नहीं आ सका, उसके धन की प्राप्ति व्यर्थ हुई। जैसे प्राणियों की मृत्यु निश्चित है, उसी प्रकार कमाए हुए धन का नाश भी निश्चित है।

मूर्ख मनुष्य ही क्षणभंगुर जीवन और चंचल धन के मोह में बंधा रहता है। जब धन दान के लिए, प्राणियों के उपभोग के लिए, कीर्ति के लिए और धर्म के लिए काम में नहीं लाया जा सके तो उस धन का मालिक बनने में क्या लाभ है? इसलिए प्रारब्ध से मिले या पुरुषार्थ से, किसी भी उपाय से धन को प्राप्तकर उसे उत्तम ब्राह्मणों को दान दें, अथवा को स्थिर कीर्ति बनवावे। चूंकि दान और कीर्ति से भी बढ़कर मंदिर बनवाना है, इसलिए बुद्धिमान मनुष्य विष्णु आदि देवताओं का मंदिर आदि बनवावे। भक्तिमान श्रेष्ठ पुरुषों के द्वारा यदि भगवान् के मंदिर का निर्माण और उसमें भगवान् का प्रवेश (स्थापन आदि) हुआ तो यह समझना चाहिए कि उसने समस्त चराचर त्रिभुवन को रहने के लिए भवन बनवा दिया।

Leave a Comment

×