माँ दुर्गा के षोडश (16) नाम

ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृतिखण्ड के 43वें अध्याय के अनुसार वेद की कौथुमी शाखा में माँ दुर्गा के 16 नामों का वर्णन है जो कि इस प्रकार हैं: दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अम्बिका, गौरी, पार्वती, सनातनी

दुर्गा – दुर्ग+आ। दुर्ग शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबंधन, कर्म, शोक, दुःख, नरक, यमदंड, जन्म, महान् भय तथा अत्यंत रोग के अर्थ में आता है तथा ‘आ’ शब्द ‘हन्ता’ का वाचक है। जो देवी इन दैत्य और महाविघ्न आदि का हनन करती है, उसे ‘दुर्गा‘ कहा गया है।

नारायणी – दुर्गा यश, तेज, रूप और गुणों में नारायण के समान हैं तथा नारायण की ही शक्ति हैं। इसलिए ‘नारायणी‘ कही गयी हैं।

नित्या – जैसे भगवान् नित्य हैं उसी तरह भगवती भी ‘नित्या‘ हैं।

ईशाना – ईशान+आ। ‘ईशान’ शब्द सम्पूर्ण सिद्धियों के अर्थ में प्रयुक्त होता है और ‘आ’ शब्द दाता का वाचक है। जो सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली है, वही देवी ‘ईशाना‘ कही गयी है।

सती – देवी दुर्गा सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं, प्रत्येक युग में विद्यमान हैं तथा पतिव्रता एवं सुशीला हैं। इसलिए उन्हें ‘सती‘ कहते हैं।

विष्णुमाया – पूर्वकाल में सृष्टि के समय परमात्मा विष्णु ने माया की सृष्टि की थी और अपनी उस मायाद्वारा सम्पूर्ण विश्व को मोहित किया। वह मायादेवी विष्णु की ही शक्ति है, इसलिए ‘विष्णुमाया‘ कहलाती हैं।

शिवा – शिव+आ। शिव शब्द शिव एवं कल्याण अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा ‘आ’ शब्द प्रिय और दाता के अर्थ में। वह देवी कल्याणस्वरूपा है, शिवदायिनी और शिवप्रिया है, इसलिए ‘शिवा‘ कही जाती है।

सत्या – प्राकृत प्रलय के समय देवी दुर्गा अपनी माया से परमात्मा श्रीकृष्ण में तिरोहित रहती हैं। ब्रह्मा से लेकर तृण अथवा कीटपर्यन्त सम्पूर्ण जगत् कृत्रिम होने के नारण मिथ्या ही है, परन्तु दुर्गा सत्यस्वरूपा हैं। जैसे भगवान् सत्य हैं, उसी तरह प्रकृतिदेवी भी ‘सत्या‘ हैं।

भगवती – सिद्ध, ऐश्वर्य आदि के अर्थ में ‘भग’ शब्द का प्रयोग होता है, ऐसा समझना चाहिए। वह सम्पूर्ण सिद्ध, ऐश्वार्यादिरूप भग प्रत्येक युग में जिनके भीतर विद्यमान है, उन देवी दुर्गा को ‘भगवती‘ कहा गया है।

वैष्णवी – देवी श्रीविष्णु की भक्ता, विष्णुरूपा तथा विष्णु के द्वारा ही उनकी सृष्टि हुई है। इसलिए उन्हें ‘वैष्णवी‘ कहा जाता है।

गौरी – भगवान् शिव सबके गुरु हैं और देवी उनकी सती-साध्वी प्रिया शक्ति हैं। इसलिए गौरी कही गई हैं। श्रीकृष्ण ही सबके गुरु हैं और देवी उनकी माया हैं। इसलिए भी उनको ‘गौरी‘ कहा गया है।

सनातनी – ‘सना’ का अर्थ है सर्वदा और ‘तनी’ का अर्थ है विद्यमान। सर्वत्र और सब काल में विद्यमान होने से वे देवी ‘सनातनी‘ कही जाती हैं।

पार्वती – पर्व शब्द तिथिभेद (पूर्णिमा), पर्वभेद, कल्पभेद तथा अन्यान्य भेद अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘ती’ शब्द ख्याति के अर्थ में आता है। उन पर्व आदि में विख्यात होने से उन देवी को पार्वती कहा जाता है। ‘पर्वन्’ शब्द महोत्सव विशेष के अर्थ में आता है। उसकी अधिष्ठात्री देवी होने के नाते उन्हें ‘पार्वती’ कहा गया है। वे देवी पर्वत (गिरिराज हिमालय) की पुत्री हैं। पर्वत पर प्रकट हुई हैं तथा पर्वत की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिए भी उन्हें ‘पार्वती‘ कहते हैं।

सर्वाणी – जो विश्व के सम्पूर्ण चराचर प्राणियों को जन्म, मृत्यु, जरा आदि की तथा मोक्ष की भी प्राप्ति कराती हैं, वे देवी अपने इसी गुण के कारण ‘सर्वाणी‘ कहलाती हैं।

सर्वमंगला – मंगल शब्द मोक्ष का वाचक है और ‘आ’ शब्द दाता का। जो सम्पूर्ण मोक्ष देती हैं, वे ही देवी ‘सर्वमंगला’ हैं। ‘मंगल’ शब्द हर्ष, संपत्ति और कल्याण के अर्थ में प्रयुक्त होता है। जो उन सबको देती हैं, वे ही देवी ‘सर्वमंगला’ नाम से विख्यात हैं।

अम्बिका – अम्बा शब्द माता का वाचक है तथा वंदन और पूजन-अर्थ में भी ‘अम्ब’ शब्द का प्रयोग होता है। वे देवी सबके द्वारा पूजित और वन्दित हैं तथा तीनों लोकों की माता हैं, इसलिए ‘अम्बिका‘ कहलाती हैं।

अब जानते हैं कि माँ दुर्गा की सबसे पहले किसने पूजा की और किन किन लोगों ने पूजा की थी।

पहले पहल परमात्मा श्रीकृष्ण ने सृष्टि के आदिकाल में गोलोकवर्ती वृन्दावन के रासमण्डल में देवी कि पूजा की थी। दूसरी बार मधु और कैटभ से प्राप्त होने पर ब्रह्माजी ने उनकी पूजा की। तीसरी बार त्रिपुरारि महादेव ने त्रिपुर से प्रेरित होकर देवी का पूजन किया था। चौथी बार पहले दुर्वासा के शाप से राज्यलक्ष्मी से भ्रष्ट हुए देवराज इंद्र ने भक्तिभाव के साथ देवी भगवती सती की समाराधना की थी। तबसे मुनीन्द्रों, सिद्धेन्द्रों, देवताओं तथा श्रेष्ठ महर्षियों द्वारा सम्पूर्ण विश्व में सब ओर और सदा देवी की पूजा होने लगी।

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