श्रीकृष्ण के कितने पुत्र थे

अग्निपुराण के 276वें अध्याय के अनुसार महर्षि कश्यप वसुदेव के रूप में अवतीर्ण हुए थे और नारियों में श्रेष्ठ अदिति का देवकी के रूप में प्राकट्य हुआ था। वसुदेव और देवकी से भगवान् श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ। वे बड़े तपस्वी थे। धर्म की रक्षा, अधर्म का नाश, देवता आदि का पालन तथा दैत्य आदि का मर्दन – यही उनके अवतार का उद्देश्य था।

रुक्मिणी, सत्यभामा और नग्नजित् कुमारी सत्या – ये भगवान् की प्रिय रानियाँ थीं। इनमें भी सत्यभामा उनकी आराध्य देवी थीं। इनके सिवा गंधार राजकुमारी लक्ष्मणा, मित्रविन्दा, देवी कालिन्दी, जाम्बवती, सुशीला, माद्री, कौसल्या, विजया और जया आदि 16000 देवियाँ भगवान् श्रीकृष्ण की पत्नियाँ थीं।

रुक्मिणी के गर्भ से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुषेण, चारुगुप्त, भद्र्चारु, चारुविन्द, सुचारु, चारु, चारुमति (कन्या) हुए।

सत्यभामा से भानु, जाम्बवती से साम्ब, सत्या से भद्र्विंद, मित्रविन्दा से संग्रामजित्, माद्री से वृक, लक्ष्मणा से गात्रवान्, और कालिंदी से श्रुत, नाम के पुत्र हुए। इनके अतिरिक्त भगवान् श्रीकृष्ण के अन्य 16000 रानियों से भी पुत्र थे। परम बुद्धिमान् भगवान् के सभी पुत्रों की संख्या 1,00,80,000 के लगभग थी।

यादवों की कुल संख्या 3,00,00,000 थी। उस समय 60,00,000 दानव मनुष्य योनि में उत्पन्न हुए थे, जो लोगों को कष्ट पहुंचा रहे थे। उन्हीं का विनाश करने के लिए भगवान् का अवतार हुआ था। धर्म-मर्यादा की रक्षा करने के लिए ही भगवान् श्रीहरि मनुष्य रूप में प्रकट होते हैं।

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