
वरलक्ष्मी पूजा का दिन धन एवं समृद्धि की देवी की पूजा करने हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। भगवान विष्णु की पत्नी वरलक्ष्मी, देवी महालक्ष्मी के रूपों में से एक हैं। देवी वरलक्ष्मी का प्रादुर्भाव क्षीर सागर से हुआ था। देवी वरलक्ष्मी का रँग रूप का वर्णन दूधिया सागर के समान किया गया है तथा वे उसी रँग के वस्त्र धारण करती हैं। देवी का वरलक्ष्मी रूप वरदान प्रदान करता है तथा अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। इसीलिये देवी के इस रूप को वर + लक्ष्मी के रूप में जाना जाता है।
भूमिका
वरलक्ष्मी व्रत, श्रावण शुक्ल पक्ष के अन्तिम शुक्रवार को मनाया जाता है तथा यह राखी एवं श्रावण पूर्णिमा से कुछ दिन पूर्व आता है।
वरलक्ष्मी व्रत केवल स्त्रियों के लिये ही नहीं, अपितु पुरुषों के लिये भी सुझाया जाता है। आन्ध्र्, तेलंगाना तथा महाराष्ट्र के क्षेत्रों में, वरलक्ष्मी व्रत मुख्य रूप से केवल विवाहित स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है। वरलक्ष्मी व्रत, सन्तान, जीवनसाथी, विलासिता आदि सभी प्रकार की सांसारिक सुखों की कामना से किया जाता है।
इस दिन देवी वर-लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से अष्टलक्ष्मी पूजन के समान फल प्राप्त होता है। धन (श्री), पृथ्वी (भू), विद्या (सरस्वती), प्रेम (प्रीति), प्रसिद्धि (कीर्ति), शान्ति (शान्ति), आनन्द (तुष्टि) तथा शक्ति (पुष्टि) की आठ देवियों को अष्टलक्ष्मी के रूप में जाना जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत पूजा सामग्री

वरलक्ष्मी व्रत पूजा में प्रयोग होने वाली निम्नलिखित आवश्यक वस्तुओं को वरलक्ष्मी व्रत से पूर्व ही एकत्र कर लेना चाहिये। प्रस्तुत सूचि में दैनिक पूजा सामग्री सम्मिलित नहीं है, अपितु इसमें विशेष रूप से केवल वरलक्ष्मी व्रत पूजा के लिये आवश्यक वस्तुओं को ही सूचीबद्ध किया गया है।
- श्री वरलक्ष्मी जी की प्रतिमा
- पुष्प माला
- कुम्कुम
- हल्दी
- चन्दन चूर्ण
- विभूति
- दर्पण
- कँघा
- आम के पत्ते
- पुष्प
- पान के पत्ते
- पञ्चामृत
- दही
- केले
- दूध
- जल
- अगरबत्ती
- मोली
- धूप
- कर्पूर
- घन्टी
- प्रसाद
- दीपक
- अक्षत, अर्थात बिना टूटे चवाल
वरलक्ष्मी पूजा विधि

प्रस्तुत पूजा विधि को द्वात्रिंश-उपचार वरलक्ष्मी पूजा के रूप में वर्णित किया गया है। हालाँकि, दी गयी पूजा विधि में देवी वरलक्ष्मी की पूजा के सभी सोलह चरण भी सम्मिलित हैं। धर्मग्रन्थों के अनुसार, जिस पूजा में सोलह चरण अर्थात् अनुष्ठान होते हैं, उसे षोडशोपचार पूजा कहा जाता है तथा जिस पूजा में बत्तीस चरण होते हैं, उसे द्वात्रिंशोपचार पूजा के रूप में जाना जाता है। द्वात्रिंशोपचार पूजा को बत्तीशोपचार पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
वरलक्ष्मी पूजा आरम्भ करने से पूर्व पूजा में उपयोग की जाने वाली सभी आवश्यक वस्तुओं को एकत्र कर लेना चाहिये। वरलक्ष्मी पूजा के लिये आवश्यक सभी वस्तुओं के संग्रह को वरलक्ष्मी पूजन सामग्री के रूप में जाना जाता है।
1. ध्यान
पूजन का आरम्भ देवी श्री वरलक्ष्मी का ध्यान करते हुये करना चाहिये। आपके समक्ष पहले से ही स्थापित श्री वरलक्ष्मी प्रतिमा के समीप ध्यान करना चाहिये। श्री वरलक्ष्मी का ध्यान करते हुये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें।
श्री वरलक्ष्मी ध्यान मंत्र:
क्षीरसागर-संभूतां क्षीरवर्ण-समप्रभाम्।
क्षीरवर्णसमं वस्त्रं दधानां हरिवल्लभाम्।।
2. आवाहन
देवी श्री वरलक्ष्मी का ध्यान करने के पश्चात्, मूर्ति के सामने दोनों हथेलियों को जोड़कर तथा दोनों अँगूठों को अन्दर की ओर मोड़कर, आवाहन मुद्रा प्रदर्शित करते हुये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें।
श्री वरलक्ष्मी आवाहन मन्त्र:
ब्राह्मी हंससमारूढा धारिण्यक्षकमण्डलू।
विष्णुतेजोऽधिका देवी सा मां पातु वरप्रदा।।
3. आसन
देवी श्री वरलक्ष्मी का आह्वान करने के पश्चात्, दोनों हाथों की हथेलियाँ जोड़कर, अञ्जलि में पाँच पुष्प लें एवं उन्हें मूर्ति के सामने छोड़ दें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्री वरलक्ष्मी को आसन प्रदान करें।
श्री वरलक्ष्मी आसान मन्त्र:
महेश्वरि महादेवि आसनं ते ददाम्यहम्।
महैश्वर्यसमायुक्तं ब्रह्माणि ब्रह्मणः प्रिये।।
4. पाद्य
देवी श्री वरलक्ष्मी को आसन प्रदान करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये उनके चरण प्रक्षालन हेतु जल अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी पाद्य मन्त्र:
कुमारशक्तिसम्पन्ने कौमारि शिखिवाहने।
पाद्यं ददाम्यहं देवि वरदे वरलक्षणे।।
5. अर्घ्य
पाद्य अर्पण के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का जाप करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी पूजा में शीर्ष अभिषेक हेतु जल अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी अर्घ्य मन्त्र:
तीर्थोदकैर्महद्दिव्यैः पापसंहारकारकैः।
अर्घ्यं गृहाण भो लक्ष्मि देवानामुपकारिणि।।
6. आचमन
अर्घ्य अर्पण के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को आचमन हेतु जल अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी आचमन मन्त्र:
वैष्णवि विष्णुसंयुक्ते असंख्यायुधधारिणि।
आचम्यतां देवपूज्ये वरदेऽसुरमर्दिनि।।
7. पञ्चामृत-स्नान
स्नान के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को पञ्चामृत स्नान करायें।
श्री वरलक्ष्मी पञ्चामृत-स्नान मन्त्र:
पद्मे पञ्चामृतैः शुद्धैः स्नापयिष्ये हरिप्रिये।
वरदे शक्ति-सम्भूते वरदेवि वरप्रिये।।
8. स्नान
पञ्चामृत स्नान के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को स्नान के लिये जल अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी स्नान मन्त्र:
गङ्गाजलं समानीतं सुगन्धिद्रव्यसंयुतम्।
स्नानार्थं ते मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि।।
9. वस्त्र
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को नवीन वस्त्र के रूप में मोली अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी वस्त्र मन्त्र:
रजताद्रिसमं दिव्यं क्षीरसागरसन्निभम्।
चन्द्रप्रभासमं देवि वस्त्रं ते प्रददाम्यहम्।।
10. कण्ठ-सूत्र
वस्त्रार्पण के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को हार अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी कण्ठसूत्र मन्त्र:
माङ्गल्यमणिसंयुक्तं मुक्ताफलसमन्वितम्।
दत्तं मंगलसूत्रं ते गृहाण सुरवल्लभे।।
11. आभरण
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को आभूषण अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी आभरण मन्त्र:
सुवर्णभूषितं दिव्यं नानारत्नसुशोभितम्।
त्रैलोक्यभूषिते देवि गृहाणाभरणं शुभम्।।
12. गन्ध
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को चन्दन अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी गन्ध-समर्पण मन्त्र:
रक्तगन्धं सुगन्धाढ्यमष्टगन्धसमन्वितम्।
दास्यामि देवि वरदे लक्ष्मि देवि प्रसीद मे॥
13. द्रव्य
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को सौभाग्य द्रव्य के रूप में हल्दी, कुमकुम, सिन्दूर, काजल अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी सौभाग्य-द्रव्य मन्त्र:
हरिद्रां कुङ्कुमं चैव सिन्दूरं कज्जलान्वितम्।
सौभाग्यद्रव्यसंयुक्तं गृहाण परमेश्वरि॥
14. पुष्प
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को पुष्प अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी पुष्प-समर्पण मन्त्र:
नानाविधानि पुष्पाणि नानावर्णयुतानि च।
पुष्पाणि ते प्रयच्छामि भक्त्या देवि वरप्रदे।।
15. अङ्ग-पूजन
तदोपरान्त, उन देवताओं की पूजा करें जो देवी श्री वरलक्ष्मी के ही अङ्ग हैं। इसके लिये बायें हाथ में गन्ध, अक्षत एवं पुष्प लें एवं उन्हें दायें हाथ से श्री वरलक्ष्मी मूर्ति के पास छोड़ दें एवं निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करें।
श्री वरलक्ष्मी अङ्ग-पूजन मन्त्र:
ॐ वरलक्ष्म्यै नमः पादौ पूजयामि।
ॐ कमलवासिन्यै नमः गुल्फौ पूजयामि।
ॐ पद्मालयायै नमः जङ्घे पूजयामि।
ॐ श्रियै नमः जानुनी पूजयामि।
ॐ इन्दिरायै नमः ऊरू पूजयामि।
ॐ हरिप्रियायै नमः नाभिं पूजयामि।
ॐ लोकधात्र्यै नमः तनौ पूजयामि।
ॐ विधात्र्ये नमः कण्ठं पूजयामि।
ॐ धात्र्यै नमः नासां पूजयामि।
ॐ सरस्वत्यै नमः मुखं पूजयामि।
ॐ पद्मनिधये नमः नेत्रे पूजयामि।
ॐ माङ्गल्यायै नमः कर्णौ पूजयामि।
ॐ क्षीरसागरजायै नमः ललाटं पूजयामि।
ॐ श्रीमहालक्ष्म्यै नमः शिरः पूजयामि।
ॐ श्रीमहालक्ष्म्यै नमः सर्वाङ्गं पूजयामि।।
16. धूप
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को धूप अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी धूप मन्त्र:
धूपं दास्यामि ते देवि गोघृतेन समन्वितम्।
प्रतिगृह्ण महादेवि भक्तानां वरदप्रिये।।
17. दीप
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को दीप अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी दीप मन्त्र:
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
18. नैवेद्य
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को नैवेद्य अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी नैवेद्य मन्त्र:
नैवेद्यं परमं दिव्यं दृष्टिप्रीतिकरं शुभम्।
भक्ष्यभोज्यादिसंयुक्तं परमान्नादिसंयुतम्।।
19. ताम्बूल
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को ताम्बूल (पान एवं सुपारी) अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी ताम्बूल मन्त्र:
नागवल्लीदलैर्युक्तं चूर्णक्रमुकसंयुतम्।
वरलक्ष्मि गृहाण त्वं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
20. दक्षिणा
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को दक्षिणा (उपहार) अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी दक्षिणा मन्त्र:
सुवर्णं सर्वधातूनां श्रेष्ठं देवि च तत्सदा।
भक्त्या ददामि वरदे स्वर्णवृष्टिं च देहि मे।।
21. आरती
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को नीराजन (आरती) अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी नीराजन मन्त्र:
नीराजनं सुमङ्गल्यं कर्पूरेण समन्वितम्।
चन्द्रार्कवह्निसदृशं गृह्ण देवि नमोऽस्तु ते।।
22. दोरक-ग्रहण
तदोपरान्त, भक्त को निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये दोरक (पवित्र धागा) स्वीकार करना चाहिये।
श्री वरलक्ष्मी दोरक-ग्रहण मन्त्र:
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये सर्वपापप्रणाशिनि।
दोरकं प्रतिगृह्णामि सुप्रीता हरिवल्लभे।।
23. दोरक-बन्धन
दोरकग्रहण के पश्चात्, भक्त को निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये हाथ पर दोरक (पवित्र धागा) बाँधना चाहिये।
श्री वरलक्ष्मी दोरक-बन्धन मन्त्र:
करिष्यामि व्रतं देवि त्वद्भक्तस्त्वत्परायणः।
श्रियं देहि यशो देहि सौभाग्यं देहि मे शुभे।।
24. पुनरर्घ्य
दोरकबन्धन, के पश्चात्, पुनः देवी श्री वरलक्ष्मी को शीर्ष अभिषेक हेतु निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये जल अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी पुनरर्घ्यम् मन्त्र:
क्षीरार्णवसुते लक्ष्मि चन्द्रस्य च सहोदरि।
गृहाणार्घ्यं महालक्ष्मि देवि तुभ्यं नमोऽस्तु ते।।
25. बिल्व-पत्र
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को बिल्वपत्र अर्पित करें।
श्री वरलक्ष्मी बिल्वपत्र मन्त्र:
श्रीवृक्षस्य दलं देवि महादेवप्रियं सदा।
बिल्वपत्रं प्रयच्छामि पवित्रं ते सुनिर्मलम्।।
26. प्रदक्षिणा
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का जाप करते हुये पुष्पों से प्रतीकात्मक प्रदक्षिणा, अर्थात् श्री वरलक्ष्मी के बायें से दायें की ओर परिक्रमा करें।
श्री वरलक्ष्मी प्रदक्षिणा मन्त्र:
इह जन्मनि यत्पापं मम जन्मान्तरेषु च।
निवारय महादेवि लक्ष्मि नारायणप्रिये।।
27. नमस्कार
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को प्रणाम करें।
श्री वरलक्ष्मी नमस्कार मन्त्र:
कामोदरि नमस्तेऽस्तु नमस्त्रैलोक्यनायिके।
हरिकान्ते नमस्तेऽस्तु त्राहि मां दुःखसागरात्।।
28. व्रत-समर्पण
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को व्रत समर्पण करें।
श्री वरलक्ष्मी व्रत-समर्पण मन्त्र:
क्षीरार्णवसमुद्भूते कमले कमलालये।
प्रयच्छ सर्वकामांश्च विष्णुवक्षःस्थलालये।।
29. क्षमार्पण
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये पूजा के समय हुयी किसी भी ज्ञात-अज्ञात त्रुटि के लिये श्री वरलक्ष्मी से क्षमा याचना करें।
श्री वरलक्ष्मी क्षमार्पण मन्त्र:
छत्रं चामरमान्दोलं दत्त्वा व्यजनदर्पणे।
गीतवादित्रनृत्यैश्च राजसम्माननैस्तथा।
क्षमापये सूपचारैः समभ्यर्च्य महेश्वरीम्।।
यन्मया च कृतं देवि परिपूर्णं कुरुष्व तत्।।
30. प्रार्थना
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी से प्रार्थना करें।
श्री वरलक्ष्मी प्रार्थना मन्त्र:
वरलक्ष्मि महादेवि सर्वकाम-प्रदायिनि।
यन्मया च कृतं देवि परिपूर्णं कुरुष्व तत्।।
31. वायन
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का जाप करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी को मिष्टान्न का भोग लगायें।
श्री वरलक्ष्मी वायन मन्त्र:
एकविंशतिपक्वान्नशर्कराघृतसंयुतम्।
वायनं ते प्रयच्छामि इन्दिरा प्रीयतामिति।
इन्दिरा प्रतिगृह्णाति इन्दिरा वै ददाति च।
इन्दिरा तारकोभाभ्यामिन्दिरायै नमो नमः।।
32. पूजा-समर्पण
तदोपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवी श्री वरलक्ष्मी पूजा सम्पन्न करें।
श्री वरलक्ष्मी पूजा-समर्पणम् मन्त्र:
पञ्च वायनकानेवं दद्याद्दक्षिणया युतान्।
विप्राय चाथ यतये देव्यै तु ब्रह्मचारिणे।
सुवासिन्यै ततस्त्वेकं दापयेच्च यथाविधि।।