पुत्र प्राप्ति व्रत

वराह पुराण के अनुसार अध्याय 64 के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की जो अष्टमी तिथि में भगवान् श्रीहरि की पूजा का विधान है। मन में ऐसी भावना करे कि भगवान् नारायण कृष्णरूप धारण करके माता की गोद में बैठे हैं। माताओं का समुदाय उनकी सब ओर से शोभा दे रहा है। अष्टमी की प्रातःकालीन स्वच्छ वेला में पहले कहे हुए विधान के अनुसार बड़े यत्न से भगवान् का अर्चन करना चाहिए।

इस विधि के साथ गोविन्द का पूजन करने के बाद यव, तिल और घी मिश्रित पदार्ध से हवन करना चाहिए। फिर भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों को दही भोजन कराये और अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें दक्षिणा दे। उसके बाद स्वयं भोजन करे। पहला ग्रास उत्तम तिल का होना चाहिए। फिर अपनी इच्छा के अनुसार दूसरा अन्न खाया जा सकता है। भोज्य-पदार्थ स्निग्ध एवं सरस वस्तुओं से युक्त हो। साधक प्रतिमास इसी विधि के अनुसार व्रत करे। इसे कृष्णाष्टमीव्रत और अहोई अष्टमी भी कहते हैं।

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